पहले पृथ्वी कितनी सुंदर थी ,थे सुंदर सुंदर लोग
अब तो सुंदरता माने है विलासिता का भोग
पहले बातों में थी मिठास खाओ जैसे की मिठाई
बच्चे भी अब ज़हर उगले जैसे तीखी मिर्च व खटाई
पहले बड़ो में प्यार था ,था छोटो में सम्मान
हवा में थी प्यार की खुशबू, मनोहरता की खान
अब बेटा ही खुद के बाप को गाली देकर बुलाए
बुढ़ापे का ताना मारे दिन रात उन्हें सताए
अब बहती उल्टी गंगा है, हैं उल्टे पलटे कर्म
सती, सावित्री,सीता जैसे , नारियों में ना रही अब शर्म
कैसी वक्त की विडंबना है कोई समझ न पाए
ऐसे दुष्ट , दरिंदे मानव को ईश्वर ने क्यूं बनाएं
इतना बदल गया है मानव क्या बदलते समय के दौर से
वक्त बदला या हम बदले आओ विचार करे इसपे गौर से
मानव मानव से बैर करना गर मानवता है आज की
क्या होगी ये दुनियां जब कदर नहीं जज़्बात की
अपराजिता दे रही मशवरा तुमको भाई भाई बन जाओ
नफरत भरे इस सागर में प्यार की लहर दौड़ाओ
तभी बचेगी दुनियां ये ना होगी कोई बरबादी
चारों तरह फेलेंगी खुशियां और मिलेगी सच्ची आज़ादी।
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