शहडोल:शहडोल पुलिस रेंज का कोतमा और केशवाही बना पशु तस्करी का अ गढ़

शहडोल पुलिस रेंज का कोतमा और केशवाही बना पशु तस्करी का अभेद्य गढ़ 

पुलिस गिरफ्त से दूर पशु तस्करी का सरगना अब्दुल रहमान उर्फ़ बल्लु खान 

" संगठित अपराधों की दुनिया में पशु तस्करी एक बड़ा नाम बन चुका है और शहडोल संभाग इस संगठित अपराध का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। शहडोल पुलिस रेंज के साथ ही रीवा और उत्तर प्रदेश के कई पुलिस रेंज और दर्जनों थानों की सीमा को पार कर ले जाये जा रहे पशु लोड वाहनों ने यह साबित कर दिया है कि खाकी का इस सिंडिकेट के साथ तगड़ा तालमेल है, शायद यही वजह है कि कतिपय जिम्मेदार, ईमानदार अधिकारियों के तमाम प्रयासों के बावजूद इस अवैध कारोबार पर अंकुश लगा पाने में खाकी यानी पुलिस को अब तक सफलता नहीं मिल सकी है। तात्पर्य यह कि पशु तस्करी का अवैध कारोबार और उसके तस्कर नुमाइंदे शासन प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुके हैं। " 

शहडोल। संभागान्तर्गत अनूपपुर जिले का कोतमा और शहडोल जिले का केशवाही पशु तस्करी का गढ़ बनकर रह गए हैं। आलम यह है की यहाँ से प्रतिदिन 200 से अधिक बेज़ुबान मवेशी उत्तर प्रदेश मे संचालित  बूचड़ खाने पहुंच रहे है और इन बेज़ुबानो की निर्मम हत्या की जा रही है। मूक मवेशियों के खून के प्यासे इस काले कारोबार में बड़े-बड़े लोगों का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। कोतमा और केशवाही की बात की जाए तो यहां भी कुछ ऐसे चेहरे चर्चित हैं जिनके बारे में पुलिस को बखूबी जानकारी है लेकिन इन तत्वों के खिलाफ पुलिस द्वारा अब तक कोई सख्त कार्यवाही नहीं की गई परिणाम स्वरुप यह अवैध कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ता ही चला जा रहा है।

विशिष्ट सेवा पर अभयदान

गौरतलब है कि पशु तस्करी का गढ़ कहे जाने वाले केशवाही-कोतमा से उत्तर प्रदेश के बीच दो दर्जन से अधिक थाने पड़ते हैं जो अलग- जिलों और पुलिस जोन में शामिल हैं बावजूद इसके ये सरगना पुलिस की पहुंच से दूर हैं। मुखबिरो के द्वारा समय समय पर जिम्मेदारों को इस बाबत सूचना भी दी जाती है बावजूद इसके पुलिस के द्वारा इनका गढ़ तोड़ने का प्रयास नहीं किया जाता बल्कि विशिष्ट सेवा के एवज में इन तस्करो को अभय दान दे दिया जाता है।

कार्रवाई का नमूना 

अवैध धनलिप्सा का आलम यह है कि पुलिस का स्टॉफ ड्यूटी पर नहीं रहता, वह भी वाहन चेकिंग करने पहुंच जाता है और जो वाहन चालक सुविधा शुल्क दे देता है उसे सम्मान के साथ एरिया पास करा दिया जाता है और जिसके द्वारा सुविधा शुल्क देने मे कोताही बरती जाती है उस पशु तस्करी कर रहे वाहन के ड्राइवर के ऊपर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कार्रवाई करते हुए पीठ थप थपा ली जाती है और गाड़ी मालिक और और तस्करी करने वाले लोगों पर किसी भी तरह की कोई भी कार्यवाही नहीं की जाती है।

रहमान पर कौन मेहरबान 

एक ओर जहां मध्यप्रदेश शासन के मुखिया, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव  खुले मंच से पशु तस्करी एवं गौहत्या को गंभीरता से लेते हुए उसे पूरी तरह से बंद कराये जाने एवं उसमें संलिप्त शासन प्रशासन के लोगों को कड़ी कार्यवाही किये जाने की बात कर रहे है वहीं शहडोल संभाग के अनूपपुर जिले के कोतमाएवं शहडोल जिले के केशवाही से पशु तस्करी करने वाला उत्तर प्रदेश के मेरठ हाल मुकाम कोतमा का रहने वाला पशु तस्करी का सरगना पुलिस विभाग के जिम्मेदार अधिकारी पर लगातार सवाल खड़ा कर रहा है एवं प्रदेश के मुख्यमंत्री के आदेश को हवा में उड़ाता ही जा रहा है। मुख्यमंत्री की मंशा पर लगातार पानी फेर रहे मेरठ के रहमान उर्फ बल्लू खान को किसका संरक्षण प्राप्त है जो बेरोक-टोक इस अवैध कारोबार को संचालित कर रहा है। सवाल यह भी उठता है कि अब तक आखिर इस व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं हो पा रही है क्या ऐसा कोई भी नहीं है जिनके पंख गुड़ में न लिपटे हों।

तस्करों की लंबी फहरिश्त 

जानकार सूत्रों के मुताबिक इस पूरे पशु तस्करी के खेल में कोतमा से लेकर कटनी जिले के विजयराघवगढ़ के समीप टिकर तक के कई लोग शामिल हैं जिनमें से कुछ प्रमुख के नाम अब्दुल रहमान उर्फ बल्लू खान, वाजिद कुरैशी निवासी कोतमा, साजिद खान निवासी कौशांबी उत्तर प्रदेश हाल मुकाम निवासी सतना,पंकज सिंह कटरा, बाबा खान निवासी नौरोजाबाद जिला उमरिया,मोबीन खान निवासी टीकर थाना बिजराघौवगढ़ जिला कटनी हैं। सूत्रों से मिली जानकारी पर यदि विश्वास किया जाए तो यह सभी अब्दुल रहमान उर्फ बल्लू खान के  मुख्य चहेते शोहदों के रूप में पशु तस्करी में भूमिका निभा रहे हैं।

सीमा दर सीमा पायलटिंग

जानकारी के मुताबिक पशु तस्करी में संलग्न वाहनों के आगे पायलट वाहन यूं चलता है जैसे पीछे कोई राज्यपाल, मुख्यमंत्री, या मंत्री आदि आ रहे हों। पायलट वाहन रास्ता क्लियर करता जाता है अगर रास्ते में कहीं खतरा दिख रहा है या पुलिस टीम जांच करती पाई जाती है तो तस्करी वाहन को या तो रोक दिया जाता है अथवा दूसरे रास्ते से घुमा दिया जाता है। कोतमा से लेकर इस पशु तस्करी के बड़े खेल में पलेटिंग वाहनों के रूप में स्कॉर्पियो, बोलेरो, स्विफ्ट कार एवं बलेनो जैसे कीमती वाहनों का उपयोग किया जाता है।

मैनेजमेंट के शूरमां

सूत्रों से मिली खबरों पर यदि यकीन किया जाए तो कोतमा में मैनेजमेंट से लेकर पशु लोडिंग की महत्वपूर्ण भूमिका कई दबंग निभा रहे हैं। अब्दुल रहमान उर्फ बल्लू खान के इन दबंग सहित गुड़गांव में जो नाम सर्वाधिक चर्चित हैं उनमें आफताब कुरेशी, लखन लाल साहू के नाम महत्वपूर्ण हैं, वही कोतमा से लेकर कटनी जिले की सीमा तक की पायलटिंग करने वालों में कलाम खान उर्फ राज्जे, अजीम खान की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। सब कुछ जानते हुए भी कोतमा पुलिस किसी भी प्रकार से कोई कार्यवाही नहीं करती है अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे खेल का मेंन सरगना अब्दुल रहमान उर्फ बल्लू खान का इतना बड़ा पशु तस्करी का खेल चल रहा है लेकिन अपराधी तक आखिर कोतमा पुलिस क्यों नहीं पहुंच पा रही है। इसके अलावा साजिद खान,  मोबीन खान सतना वाले भी फर्स्ट तस्करी के कारोबार में आम भूमिका निभाने और पशु तस्कर वाहनों को थानों की सीमा से पर करने में आम भूमिका निभा रहे हैं जिनको अपना हिस्सा समय पर मिलता रहता है।

थाना, जिला, रेंज सब अरेंज

सबसे बड़ा सवाल यह है जानकारी के मुताबिक बल्लू खान के नुमाइंदों के द्वारा मुखबिर को भी जान से मारने की कई बार धमकी मिल चुकी है अभी हाल ही में उमरिया जिले की पुलिस अधीक्षक एवं अतिरिक्त पुलिस के निर्देश और एसडीओपी के कुशल मार्गदर्शन में  मानपुर पुलिस ने अवैध पशु तस्करी करते दो पिकअप वाहन और एक डीसीएम वाहन को जप्त कर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कार्रवाई की है वही उमरिया सिविल लाइन चौकी पुलिस एवं उमरिया कोतवाली के द्वारा भी एक-एक वाहन को जप्त कर पशु क्रूरता अधिनियम के तहत कार्रवाई की है इसके बाद भी पशु तस्करों के हौसले बुलंद हैं लगातार पशु तस्करी जोरों पर जारी है लेकिन इन पर अभी भी जिस प्रकार से लगाम लगनी चाहिए लगाम नहीं लग रही है, आखिर इस पूरे पशु तस्करी के खेल में कितने नेता कितने पुलिस के कर्मचारी एवं कितने और पशु तस्कर शामिल हैं यह तो कह पाना निश्चित नहीं है लेकिन यह जरूर है की मध्य प्रदेश का शहडोल संभाग का कोतमा पशु तस्करी के लिए सुर्खियों में है और इस पशु तस्करी के खेल को रोकने में यदि यह कहा जाए कि शहडोल संभाग की पुलिस नाकाम सी साबित हो रही है तो कम नहीं होगा। पशु तस्करी सिंडिकेट की सक्रियता और व्यापकता को देखकर आम लोगों को यही लगता है कि थाना हो या जिला अथवा रेंज पशु तस्करों ने सब को सुविधा शुल्क देकर अरेंज कर लिया है और जिसका खामियाजा मूक मवेशियों को अपनी जान देकर भुगतना पड़ रहा है। सवाल यह उठता है कि गौ वंश की रक्षा एवं उनके संरक्षण संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध डॉक्टर मोहन यादव सरकार निरीह मवेशियों की रक्षा में लापरवाही बरत रहे पुलिस मोहकमें को कर्तव्य निष्ठा की नसीहत दे पाएगी।

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