शहडोल:“वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा” विषय पर व्याख्यान माला

“वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा” विषय पर व्याख्यान माला

शहडोल। पं. शम्भूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय, शहडोल के हिंदी विभाग द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ के तत्वावधान में “वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा” विषय पर व्याख्यान माला का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत संगीत विभाग की छात्राओं द्वारा माँ सरस्वती की मधुर वंदना से हुई। तत्पश्चात अतिथियों का स्वागत पौधे भेंट कर किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता माननीय कुलगुरु प्रो. राम शंकर ने की। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा – “वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा केवल इतिहास की धरोहर नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए जीवनदायिनी ऊर्जा है। विश्वविद्यालय का दायित्व है कि वह इस परम्परा को शोध और नवाचार से जोड़ते हुए नई पीढ़ी तक पहुँचाए।”

मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित प्रो. प्रमोद पांडेय (संयोजक, भारतीय ज्ञान परम्परा प्रकोष्ठ) ने कहा – “भारत की शिक्षा प्रणाली वेदों से लेकर आधुनिक विश्वविद्यालयों तक अखंड प्रवाह की तरह निरंतर चलती रही है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा केवल सूचना अर्जन तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मोन्नति, मानवता और जीवन साधना का मार्ग प्रशस्त करती है। आज आवश्यकता है कि हम इस परम्परा को पुनः प्रासंगिक बनाएं।”

हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. गंगाधर ढोके ने स्वागत भाषण एवं विज़ वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा – “हिंदी विभाग सदैव भारतीय परम्परा और आधुनिक दृष्टि के संगम को स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा’ विषय पर यह व्याख्यान माला उसी दिशा में एक सार्थक पहल है।”

इस अवसर पर नोडल अधिकारी डॉ. महेंद्र भटनागर, संकायाध्यक्ष सुश्री सुनीता बाथरे तथा परिसर प्रभारी डॉ. गीता सराफ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा’ केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं है, बल्कि जीवन व्यवहार, सामाजिक मूल्य और संस्कृति में भी इसकी गहरी छाप है।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य, सह-आचार्य तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे। व्याख्यान माला का समापन “वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा” विषय पर निर्मित पोस्टर के विमोचन के साथ हुआ।

यह आयोजन विश्वविद्यालय में वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय अवधारणा के गौरव, उसके समकालीन महत्व और भविष्य की संभावनाओं पर गहन विमर्श का मंच बना।

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