श्री हरिहर क्षेत्र मदकू द्वीप के सृजनहार शांता राम जी निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि...
सक्ती। श्री हरिहर क्षेत्र मदकू द्वीप के सृजनहार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, (छत्तीसगढ़) के पूर्व प्रांत प्रचारक और वरिष्ठ स्वयंसेवक शांताराम जी सर्राफ के निधन पर आज नगर में विद्यार्थी परिषद ने गहरा शोक व्यक्त किया है।
विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप उनसे करीब ३६_३७ वर्षों से जुड़े उच्च न्यायालय अधिवक्ता चितरंजय पटेल ने बताया कि उनका निधन समाज और संगठन के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने बताया कि शांताराम सर्राफ जी ओजस्वी, बेबाक, कठोर अनुशासन के साथ कार्यकर्ताओं से समाज एवं देश के प्रति मन वचन व कर्म में एकरूपता के साथ कार्य करने का आग्रह करते हुए, स्वयं अपने जीवन में भी समाज और राष्ट्र के प्रति सच्चे समर्पण का ज्वलंत उदाहरण रहे।
अधिवक्ता चितरंजय पटेल ने स्मरण साझा करते हुए बताया कि वे करीब ३७ साल पूर्व सक्ती नगर प्रवास के दरमियान सरस्वती शिशु मंदिर (सफेद महल) प्रभात शाखा में पहुंचे थे तब हम विद्यार्थी परिषद के स्वदेशी आंदोलन को लेकर बहुत सक्रिय थे।
उस दिन प्रभात शाखा विसर्जन के बाद उन्हें जैसे ही कपड़ों के साथ लिरिल साबुन नजर आया, उन्होंने कड़क आवाज में कहा कि आप स्वयं विदेशी उत्पाद उपयोग करोगे तो फिर समाज को कैसे रोक पाओगे उन्होंने आगे कहा कि मन वचन और कर्म में भेद होने से आपके आंदोलन का समाज में कोई प्रभाव नहीं होगा, तब उनके रौद्र रूप देख हम सभी कार्यकर्ता कांपते खड़े रहे फिर जब हिम्मत कर सहमते बताया कि हमें लिरिल के विदेशी उत्पाद होने की जानकारी नहीं है तो वे एकदम सरल होकर तत्काल देशी_विदेशी उत्पादों की सूची देकर कहा कि जो हम अपने आचरण में नहीं करते हैं उसे दूसरे से करने का आग्रह करना बेमानी है। इसलिए समाज जीवन में अनुशासन और आचरण की शुद्धता आवश्यक है।
आज उनके स्वर्गवास का समाचार सुनकर उनके साथ बिताए पलों के साथ उनके आचरण में कठोर अनुशासन एवं उनकी अदभुत संगठनात्मक दक्षता स्मृति पटल पर उभर आई।
उनके सहज_सरल और सदा जीवन एक और वाकया याद आ रहा है कि जैसे ही उनके ठहरने के लिए जब रेस्ट हाउस में व्यवस्था करने की बात कही, बिफर पड़े और बोल पड़े तुम्हारे घर में पलंग नहीं सही किसी कमरे की जमीन तो मिल जाएगी और जो खाते हो वही दो रोटी मुझे दे देना लेकिन मैं अपने कार्यकर्ता के घर ही रहूंगा तब हम लोग उनके सादगी और अपनापन को लेकर रो डाले तभी उन्होंने हमको बताया कि एक स्वयं सेवक और प्रचारक को सादगी और विपरीत परिस्थितियों में भी जीने का अभ्यास होना चाहिए, उनकी यह बात खासकर! अब अतीत की यादें बनती जा रही हैं शायद सत्ता का दुष्प्रभाव हो।
आज उनके अवसान से निश्चित रूप से समाज और संघ परिवार को अपूरणीय क्षति हुई जिसकी भरपाई संभव नहीं है। वे उम्रदराज होने के बावजूद आखिरी तक युवाओं के प्रेरणास्त्रोत रहे,उनके निधन से विद्यार्थी परिषद परिवार स्तब्ध हैं ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके आत्मा को शांति एवं सद्गति प्रदान करे।
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