ग्राम पंचायत कामता के मूर्तिकारों की तीन पीढ़ियों से चल रही परंपरा, इस वर्ष तैयार हुई 350 गणेश प्रतिमाएँ
रिगनी। खरौद क्षेत्र के ग्राम पंचायत कामता के मूर्तिकार अपनी कला और परंपरा से समाज को धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान दिला रहे हैं। यहां मूर्तिकला केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती आस्था और परंपरा का प्रतीक है। तीन पीढ़ियों से लगातार यह परंपरा जीवित है। सबसे पहले भुखन कश्यप ने मूर्तिकला की शुरुआत की, जिसके बाद चित्रगुप्त कश्यप और फिर गौतम कश्यप अनुराग कश्यप ने इस कला को नई पहचान दिलाई। अब चित्रगुप्त कश्यप का पुत्र अनुराग कश्यप ने भी इस धरोहर को संजोते हुए मूर्ति निर्माण में जुड़ा हुआ है गौतम कश्यप ने बताया कि उनके परिवार का मुख्य कार्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ गढ़ना है। इस वर्ष उन्होंने विशेष रूप से गणेश प्रतिमाओं का निर्माण किया है। छोटे आकार से लेकर पाँच फीट ऊँचाई तक की प्रतिमाएँ उनके द्वारा बनाई गई हैं। कीमत भी आकार और कारीगरी के अनुसार ₹500 से लेकर ₹5000 तक रखी गई है। उन्होंने बताया कि अब तक लगभग 350 गणेश प्रतिमाएँ बनाई जा चुकी हैं, जिन्हें रिगनी, बोरदा, कामता, खैरताल, राहोद, सेमरा, देवरी सहित अनेक गांवों में स्थापित किया जा रहा है। इस समय वे मूर्तियों को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं उन्होंने बताया कि गणेश प्रतिमाओं के अलावा दुर्गा, काली, राम-लक्ष्मण-सीता और विश्वकर्मा की प्रतिमाएँ भी बड़े उत्साह से तैयार की जाती हैं। त्यौहारों के समय इनके निर्माण की विशेष मांग रहती है। उनका कहना है कि मूर्ति निर्माण केवल एक व्यवसाय नहीं है, बल्कि यह उनकी परंपरा, आस्था और पहचान का हिस्सा है गौतम कश्यप का मानना है कि मिट्टी से मूर्ति बनाने का काम जितना कठिन है उतना ही संतोषजनक भी है, क्योंकि जब लोग श्रद्धा से उनकी बनाई मूर्तियों की पूजा करते हैं तो यह उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। उन्होंने बताया कि समय के साथ मूर्तियों की डिजाइन और मांग में बदलाव आया है, फिर भी उनकी कोशिश यही रहती है कि परंपरा और आधुनिकता का संतुलन बनाए रखा जाए ग्राम पंचायत कामता के ये मूर्तिकार न केवल अपने क्षेत्र में बल्कि आसपास के गांवों और कस्बों में भी अपनी कला के लिए पहचाने जाते हैं। इस कला ने जहां उनकी पीढ़ियों को आजीविका दी है वहीं क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखा है
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